मामला घाटकोपर पूर्व रमाबाई कॉलोनी का।
मुंबई।
घाटकोपर पूर्व रमाबाई कॉलोनी के झोपड़ों का विकास काम एमएमआरडीए व झोपु के संयुक्त प्रयास से होने वाला है।महत्वपूर्ण बात यह है की यहां के झोपड़े 40 से 50 वर्ष पुराने हैं तो जरूर लेकिन इनमे 16575 झोपड़ों में सिर्फ 7529 झोपड़े ही पात्र हैं।यह खुलासा एमएमआरडीए द्वारा जारी पात्र अपात्र की सूची के बाद हुआ है।जिसके बाद यहां के झोपडा धारको में खलबली मच गई है।
प्राप्त जानकारी के अनुसार घाटकोपर पूर्व स्थित रमाबाई कॉलोनी में करीब 40 से 50 वर्ष पहले मुंबईकरों द्वारा झोपड़े बनाए गए हैं।बताया जाता है शांती सागर पुलिस हाउसिंग सोसायटी के आगे की झोपड़पट्टी ही 20-25 साल पहले बनी हैं।बाकी की सभी झोपड़े 40-50 वर्ष पहले के है।वर्ष 1995 में शिवशाही सरकार के कार्यकाल में मुंबई की झोपड़पट्टियों के विकास काम की योजना बनी तब से एक मंडल बना जिसका नाम झोपड़पट्टी पूर्नविकास प्राधिकरण महामंडल मतलब झोपु (एसआरए) दिया गया।इसी मंडल के अधीन आधे से अधिक झोपड़पट्टियों का विकास काम हो चुका है।लेकिन मुंबई के रमाबाई कॉलोनी और चेंबूर के सिद्धार्थ कॉलोनी,पी.एल.लोखंडे मार्ग का विकास काम अधर में लटका हुआ है।
बताया जाता है की मुंबई फ्री वे को इंडियल ऑयल नगर से पूर्व दुर्त गतिमहामार्ग विक्रोली ट्रैफिक चौकी तक जोड़ने के लिए रमाबाई कॉलोनी की झोपड़पट्टी बाधा का कारण बनी हुई थी।जिसके बाद शासन ने निर्णय लिया की रमाबाई कॉलोनी को उसी जगह पर पुनर्वासित करने के लिए शासन प्रशासन एसआरए व एमएमआरडीए संयुक्त रूप से काम करे।जिसके तहत एमएमआरडीए के अधिकारियो ने इस झोपड़पट्टी का सर्वे किया है।सूत्रो का कहना है की गत दिनों सभी झोपडाधारको का सर्वे हुआ और उसी के आधार उनसे उनके मकानों के कागजात जमाकरवा कर उनके झोपड़ों के पात्रता देखी गई है।जिसके आधार पर एनेक्सर 2 बनाया गया है।स्थानीय निवासियो का कहना है यहां मिंधे गट के कुछ तथाकथित नेता जिनका खुद कोई वजूद नहीं है वे लोग एसआरए और एमएमआरडीए के अधिकारियो से सांठगांठ करके अपना उल्लू सीधा कर रहे हैं वही लोग गरीबो के मंसूबो पर पानी फेरने के लिए उनका हक मारने के प्रयास में हैं।जिसके चलते 17 हजार 575 झोपड़ों में से सिर्फ 7 हजार 529 झोपड़ों को ही पात्र दिखाया जा रहा है।जिसकी सूची मतलब परिशिष्ट 2-गुरूवार 19 जुलाई 2024 को जारी हुई है।अचरज की बात तो यह है रमाबाई के लोग ऐसे तथाकथित नेताओ के चक्कर में अपना हक गवा रहे है जिसकी हर स्तर पर निंदा हो रही है।
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